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वो घड़ी जिसे देखकर आइंस्टीन को ‘थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी’ का ख्याल आया

वो घड़ी जिसे देखकर आइंस्टीन को ‘थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी’ का ख्याल आया

स्विट्जरलैंड अपनी पहचान दुनिया भर में अनेकों वजह से बनाये हुए है. इसी कड़ी में एक और कारण जुड़ गया है इसकी अलग पहचान में. स्विटज़रलैंड की राजधानी बर्न में क़रीब 500 साल पुरानी एक घड़ी है जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है.

आइये जानते हैं इस अनोखी घडी के बारे में-
1. करीब 500 साल पुरानी इस घड़ी का नाम है  ‘ज़िटग्लॉग’.
2. यह लकड़ी की दीवार घड़ी है जिसकी देखभाल मार्टी नाम का शख्स लगभग पिछले 40 साल से कर रहा है.
3. इस घड़ी के पेन्डुलम की टिक-टिक की आवाज़ इतनी तेज होती है कि घड़ी के आसपास खड़े होकर बात करना आसान नहीं होता है.
4. हर एक घंटे में इस घड़ी में मुर्गे बांग आते  हैं जो कि अपने आप में एक अनूठा दृश्य बनाते हैं.
5. घड़ी के पेंडुलम पर सोने के पत्तर से युक्त मूर्तियाँ बनी हुई हैं जो कि पेंडुलम के साथ ही घूमती भी हैं.
6. पेंडुलम के ऊपर बनीं इन मूर्तियों को ‘क्रोनोस’ कहा जाता है.
7. यहां एक म्यूज़ियम भी है जहां भौतिक विज्ञान की थ्योरी को वीडियो के ज़रिए समझाया जाता है.

आइंस्टीन को अपनी ‘थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी’ का ख्याल इसी घड़ी से आया :

कहा जाता है कि ये वो घड़ी है जिसे देखते हुए महान वैज्ञानिक आइंस्टीन को अपनी ‘थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी’ का ख़याल आया था.
ये बात सन 1905 की है. एक शाम आइंस्टीन ने इस घड़ी की आवाज़ सुनी. और सोचने लगे कि अगर कोई ट्राम, रौशनी की रफ़्तार से इस घड़ी से दूर भागे तो क्या होगा? सब रौशनी की रफ़्तार इतनी तेज़ होती है कि ट्राम, पलक झपकते ही बहुत दूर चली जाएगी.
लेकिन उसके मुक़ाबले घड़ी की टिक-टॉक की रफ़्तार धीमी रहती है, तो, चलती हुई घड़ी भी ट्राम की रफ़्तार के आगे रुकी हुई नज़र आएगी.
इसी घड़ी को देखते हुए आए ख़याल ने आइंस्टाइन को एक नई राह दिखा दी और उन्होंने छह हफ़्तों बाद ही एक नई थ्योरी के साथ अपना रिसर्च पेपर लिख डाला. इस पेपर का नाम था ‘स्पेशल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी’.

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