कुतुब मीनार, 120 मीटर ऊँची दुनिया की सबसे बड़ी ईंटो की मीनार है और मोहाली की फ़तेह बुर्ज के बाद भारत की दुसरी सबसे बड़ी मीनार है. प्राचीन काल से ही क़ुतुब मीनार का इतिहास चलता आ रहा है, कुतुब मीनार का आस-पास का परिसर कुतुब कॉम्पलेक्स से घिरा हुआ है, जो एक UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साईट भी है. कुतुब मीनार दिल्ली के मेहरुली भाग में स्थापित है. यह मीनार लाल पत्थर और मार्बल से बनी हुई है, कुतुब मीनार 72.5 मीटर (237.8 फ़ीट) ऊँची है जिसका डायमीटर 14.32 मीटर (47 फ़ीट) तल से और 2.75 मीटर (9 फ़ीट) चोटी से है. मीनार के अंदर गोल सीढ़ियाँ है, ऊँचाई तक कुल 379 सीढ़ियाँ है. क़ुतुब मीनार / Qutub Minar स्टेशन दिल्ली मेट्रो से सबसे करीबी स्टेशन है.




क़ुतुब मीनार भारत में दक्षिण दिल्ली शहर के महरौली भाग में स्थित है। क़ुतुब मीनार से जुड़ी कई रोचक बातें हैं। उनमें से 10 रोचक बातें निम्नलिखित हैं: 

1. 
क़ुतुब मीनार का निर्माण गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1193 ई० में शुरू कराया था किन्तु कुतुबुद्दीन ऐबक ने क़ुतुब मीनार का आधार ही बनवाया था इसके बाद उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसमें तीन मंजिलों को बढ़ाया और सन 1368 में फीरोजशाह तुगलक ने पांचवी और अन्तिम मंजिल बनवाई।

2. कहते हैं कि क़ुतुब मीनार का नाम ख़्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर रखा गया था।

3. ऐसा भी कहा जाता है कि 
क़ुतुब मीनार का वास्तविक नाम विष्णु स्तंभ है जिसे कुतुबदीन ने नहीं बल्कि सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक और खगोलशास्त्री वराहमिहिर ने बनवाया था। 

4. क़ुतुब मीनार ईंट से बनी विश्व की सबसे ऊँची मीनार है। इसकी ऊँचाई 72.5 मीटर और व्यास 14.3 मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर हो जाता है। 

5. पाँच 
मंजिला क़ुतुब मीनार की तीन मंजिले लाल बलुआ पत्थर से एवं अन्य दो मंजिले संगमरमर एवं लाल बलुआ पत्थर से बनाई गयी हैं और प्रत्येक मंजिल के आगे बॉलकनी स्थित है। 


6. क़ुतुब मीनार में 379 सीढ़ियां हैं।

7. 
क़ुतुब मीनार परिसर में क़ुतुब मीनार, कुब्बत-उल-इस्लाम मस्जिद, अलाई मीनार, आली दरवाजा, लौह स्तंभ और इल्तुत्मिश का मकबरा स्थित है।

8. 
क़ुतुब मीनार के परिसर में स्थित लौह स्‍तंंभ की खासियत यह है कि सैकड़ों वर्ष पुराना होने के बाद भी इस स्‍तंंभ में अभी तक जंग नहीं लगी है। 
 

9. क़ुतुब मीनार पुरातन दिल्ली शहर, ढिल्लिका के प्राचीन किले लालकोट के अवशेषों पर बनी है। ढिल्लिका अन्तिम हिन्दू राजाओं तोमर और चौहान की राजधानी थी। 

10. 
क़ुतुब मीनार बहुत प्राचीन इमारत है और एतिहासिक रूप से क़ुतुब मीनार जैसी कई इमारतें और हैं जैसे कि द टॉम्ब ऑफ़ इल्युमिश, अलाई दरवाजा, अला-उद-दिन मदरसा, ज़मीन टॉम्ब आदि।


क़ुतुब मीनार का इतिहास – Qutub Minar History In Hindi

क़ुतुब मीनार का निर्माण कार्य क़ुतुब-उद-दिन ऐबक ने 1199 AD में शुरू किया था, जो उस समय दिल्ली सल्तनत के संस्थापक थे. कुतुब मीनार को पूरा करने के लिये उत्तराधिकारी ऐबक ने उसमे तीन और मीनारे बनवायी थी.
कुतुब मीनार के नाम को दिल्ली के सल्तनत कुतुब-उद-दिन ऐबक के नाम पर रखा गया है, और इसे बनाने वाला बख्तियार काकी एक सूफी संत था. कहा जाता है की कुतुब मीनार का आर्किटेक्चर तुर्की के आने से पहले भारत में ही बनाया गया था. लेकिन क़ुतुब मीनार के सम्बन्ध में इतिहास में हमें कोई भी दस्तावेज नही मिलता है. लेकिन कथित तथ्यों के अनुसार इसे राजपूत मीनारों से प्रेरीत होकर बनाया गया था. पारसी-अरेबिक और नागरी भाषाओ में भी हमें क़ुतुब मीनार के इतिहास के कुछ अंश दिखाई देते है. क़ुतुब मीनार के सम्बन्ध में जो भी इतिहासिक जानकारी उपलब्ध है वो फ़िरोज़ शाह तुगलक (1351-89) और सिकंदर लोदी (1489-1517) से मिली है.
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद भी कुतुब मीनार के उत्तर में ही स्थापित है, जिसे क़ुतुब-उद-दिन ऐबक ने 1192 में बनवाया था. भारतीय उपमहाद्वीप की यह काफी प्राचीन मस्जिद मानी जाती है. लेकिन बाद में कुछ समय बाद इल्तुमिश (1210-35) और अला-उद-दिन ख़िलजी ने मस्जिद का विकास किया.


1368 AD में बिजली गिरने की वजह से मीनार की ऊपरी मंजिल क्षतिग्रस्त हो गयी थी और बाद में फ़िरोज़ शाह तुगलक ने इसका पुनर्निर्माण करवाया. इसके साथ ही फ़िरोज़ शाह ने सफ़ेद मार्बल से 2 और मंजिलो का निर्माण करवाया. 1505 में एक भूकंप की वजह से क़ुतुब मीनार को काफी क्षति पहोची और हुई क्षति को बाद में सिकंदर लोदी ने ठीक किया था. 1 अगस्त 1903 को एक और भूकंप आया, और फिर से क़ुतुब मीनार को क्षति पहोची, लेकिन फिर ब्रिटिश इंडियन आर्मी के मेजर रोबर्ट स्मिथ ने 1928 में उसको ठीक किया और साथ ही कुतुब मीनार के सबसे ऊपरी भाग पर एक गुम्बद भी बनवाया. लेकिन बाद में पकिस्तान के गवर्नल जनरल लार्ड हार्डिंग के कहने पर इस गुम्बद को हटा दिया गया और उसे क़ुतुब मीनार के पूर्व में लगाया गया था.

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