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पृथ्वी का इतिहास, उत्पत्ति, संरचना | History of Earth Creation In Hindi Language

पृथ्वी का इतिहास, उत्पत्ति, संरचना | History of Earth Creation In Hindi Language

Earth/पृथ्वी, जिसे विश्व अथवा The World भी कहा जाता है, सूर्य से दूरी के क्रम में तीसरा ग्रह है। पृथ्वी नाम पौराणिक कथा पर आधारित है जिसका महराज पृथु से है। इंग्लिश में इसे अर्थ के भी नाम से जाना जाता हैं। अर्थ एक जर्मन भाषा का शब्द है, इस शब्द का साधारण मतलब ग्राउंड है। पृथ्वी आकार में 5वां सबसे बड़ा ग्रह है और यह सौरमण्डल का एकमात्र ग्रह है, जिस पर जीवन है।


पृथ्वी ग्रह का निर्माण – Earth Born History In Hindi Language

पृथ्वी ग्रह का निर्माण लगभग 4.54 अरब वर्ष पूर्व हुआ था और इस घटना के एक अरब वर्ष पश्चात यहा जीवन का विकास शुरू हो गया था। वैज्ञानिकों द्वारा रिसर्च के अनुसार पृथ्वी लगभग 4 बिलियन वर्ष पहले का है। लगभग इसी समय ही पूरे सौर मंडल की उत्पत्ति हुई। पृथ्वी का निर्माण एक गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा सूर्य के आस पास घूर्णन करते हुए गैस तथा डस्ट के सम्मिश्रण से हुआ है। पृथ्वी में सेंट्रल कोर, रॉकी मेटल तथा एक सॉलिड क्रस्ट है।
वैज्ञानिकों का मानना हैं की 4 बिलियन वर्ष पहले हमारी धरती का ज्यादातर हिस्सा खौलते हुए लावा जैसा रहा होगा। बाद में जैसे-जैसे लावा ठंडा होता गया, धरती के ऊपरी सतह का निर्माण होता गया। तब से पृथ्वी के जैवमंडल ने यहां के वायु मण्डल में काफ़ी परिवर्तन किया है। समय बीतने के साथ ओजोन पर्त बनी जिसने पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के साथ मिलकर पृथ्वी पर आने वाले हानिकारक सौर विकरण को रोककर इसको रहने योग्य बनाया।
पृथ्वी का द्रव्यमान 6.569J1021 टन है। पृथ्वी बृहस्पति जैसा गैसीय ग्रह न होकर एक पथरीला ग्रह है। पृथ्वी सभी चार सौर भौमिक ग्रहों में द्रव्यमान और आकार में सबसे बड़ी है। अन्य तीन भौमिक ग्रह हैं- बुध, शुक्र और मंगल। इन सभी ग्रहों में पृथ्वी का घनत्व, गुरुत्वाकर्षण, चुम्बकीय क्षेत्र और घूर्णन सबसे ज्यादा है। पृथ्वी न केवल मानव का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों का भी घर है।
ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी सौर नीहारिका के अवशेषों से अन्य ग्रहों के साथ ही बनी। इसका अंदरूनी हिस्सा गर्मी से पिघला और लोहे जैसे भारी तत्व पृथ्वी के केन्द्र में पहुंच गए। लोहा व निकिल गर्मी से पिघल कर द्रव में बदल गए और इनके घूर्णन से पृथ्वी दो ध्रुवों वाले विशाल चुंबक में बदल गई। बाद में पृथ्वी में महाद्वीपीय विवर्तन या विचलन जैसी भूवैज्ञानिक क्रियाएं पैदा हुई। इसी प्रक्रिया से पृथ्वी पर महाद्वीप, महासागर और वायुमंडल आदि बने।

पृथ्वी की त्रिज्या और सूर्य से दूरी – Earth radius and distance from the sun

पृथ्वी का अर्धव्यास लगभग 6,371 किलोमीटर और आकार के आधार पर सौरमंडल में पाँचवा बड़ा पिण्ड है। पृथ्वी सूर्य से करीबन 150 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस दूरी को एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट नाम दिया गया है। सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में लगभग 8.3 मिनट का समय अंतराल लग जाता है।

आंतरिक संरचना – Internal Structure Of Earth In Hindi 

पृथ्वी की आतंरिक संरचना शल्कीय अर्थात परतों के रूप में है जैसे प्याज के छिलके परतों के रूप में होते हैं। इन परतों की मोटाई का सीमांकन रासायनिक विशेषताओं अथवा यांत्रिक विशेषताओं के आधार पर किया जा सकता है। पृथ्वी की मुख्य रूप से चार परत है। इसके सबसे अन्दर इसका केंद्र है, जिसे क्रस्ट तथा मेटल घेरे हुए रहती है। सबसे बाहर में भूपटल होता है। पृथ्वी के इनर कोर का अर्धव्यास 1221 किलोमीटर का है। यह लोहा और निकेल से बना हुआ है। यहाँ का तापमान 10,830 °F यानि लगभग 6,000 °C होता है। इसके ऊपर 2210 किलोमीटर मोटी परत होती है, जिसका निर्माण भी लोहा निकेल तथा विभिन्न तरह के रसायनों से हुआ है। आउटर कोर और क्रस्ट के बीच में मेटल वाली सबसे मोटी परत होती है। पृथ्वी का सबसे बाहरी हिस्सा (आउटर लेयर) लगभग 30 किलोमीटर मोटा होता है।

पृथ्वी की सतह – Earth surface in Hindi

मंगल और बृहस्पति ग्रहों की तरह ही पृथ्वी के पास भी ज्वालामुखी, पहाड, घाटियाँ आदि हैं। पृथ्वी का लिथोस्फेरे जिसमे क्रस्ट और ऊपरी मेटल है, यह विभिन्न बड़ी प्लेट्स में बटी होने के साथ लगातार चलती रहती हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तरी अमेरिका प्लेट प्रशांत महासागर बेसिन के ऊपर से गुज़रता है। इस समय इस प्लेट की गति लगभग उतनी ही होती है, जितनी किसी व्यक्ति के नाखून बढ़ने की। जब एक प्लेट किसी दूसरी प्लेट के मार्ग में आती है, और दोनों प्लेट्स में घर्षण भूकंप की उत्पत्ति करता है। कई बार तो प्लेट के एक दूसरे पर चढ़ जाने से पहाड़ों का भी निर्माण होता है।

पृथ्वी की आकृति – Earth texture In Hindi 

पृथ्वी की आकृति लघ्वक्ष गोलाभ के समान है। यह लगभग गोलाकार है जो ध्रुवों पर थोड़ा चपटी है। पृथ्वी पर सबसे उच्चतम बिंदु माउंट एवरेस्ट है जिसकी ऊँचाई 8848 मी. है। दूसरी ओर सबसे निम्नतम बिंदु प्रशांत महासागर में स्थित मारियाना खाई है जिसकी समुद्री स्तर से गहराई 10,911 मी. है। पृथ्वी के कुल आयतन का 0.5% भाग भूपर्पटी का है जबकि 83% भाग में मैंटल विस्तृत है। शेष 16% भाग क्रोड है। पृथ्वी का निर्माण आयरन (32.1 फीसदी), ऑक्सीजन (30.1 फीसदी), सिलिकॉन (15.1 फीसदी), मैग्नीशियम (13.9 फीसदी), सल्फर (2.9 फीसदी), निकिल (1.8 फीसदी), कैलसियम (1.5 फीसदी) और अलम्युनियम (1.4 फीसदी) से हुआ है। इसके अतिरिक्त लगभग 1.2 फीसदी अन्य तत्वों का भी योगदान है। क्रोड का निर्माण लगभग 88.8 फीसदी आयरन से हुआ है। भूरसायनशास्त्री एफ. डल्ब्यू, क्लार्क के अनुसार पृथ्वी की भूपर्पटी में लगभग 47 फीसदी ऑक्सीजन है।
पृथ्वी के केन्द्र के क्षेत्र को ‘केन्द्रीय भाग’ कहते हैं। यह सबसे बड़ा क्षेत्र है। यह क्षेत्र निकिल व फ़ेरस का बना है। इसका औसत घनत्व 13 ग्राम/सेमी3 है। पृथ्वी का केन्द्रीय भाग सम्भवतः द्रव अथवा प्लास्टिक अवस्था में है। यह पृथ्वी का कुल आयतन का 16% भाग घेरे हुए है। पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 ग्राम/सेमी.3 एवं औसत त्रिज्या लगभग 6370 किमी0 है। पृथ्वी के नीचे जाने पर प्रति 32 मीटर की गहराई पर तापमान 1ºसी बढ़ता जाता है।
पृथ्वी का तल असमान है। तल का 70.8 फीसदी भाग जल से आच्छादित है, जिसमें अधिकांश महासागरीय नितल समुद्री स्तर के नीचे है। पृथ्वी पर करीबन 97 % पानी महासागरों में मौजूद है। लगभग सभी ज्वालामुखी इन्हीं महासागरों के अन्दर मौजूद हैं।
पृथ्वी के धरातल पर कहीं विशाल पर्वत, कहीं ऊबड़-खाबड़ पठार तो कहीं पर उपजाऊ मैदान पाये जाते हैं। महाद्वीप और महासागरों को प्रथम स्तर की स्थलाकृति माना जाता है जबकि पर्वत, पठार, घाटी निचले स्तरों के अंतर्गत रखे जाते हैं। पृथ्वी का तल समय काल के दौरान प्लेट टेक्टोनिक्स और क्षरण की वजह से लगातार परिवर्तित होता रहता है। प्लेट टेक्टोनिक्स की वजह से तल पर हुए बदलाव पर मौसम, वर्षा, ऊष्मीय चक्र और रासायनिक परिवर्तनों का असर पड़ता है। हिमीकरण, तटीय क्षरण, प्रवाल भित्तियों का निर्माण और बड़े उल्का पिंडों के पृथ्वी पर गिरने जैसे कारकों की वजह से भी पृथ्वी के तल पर परिवर्तन होते हैं।

पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर घूमती रहती है। इसकी दो गतियां है :-

  • घूर्णन : – पृथ्वी के अक्ष पर चक्रण को घूर्णन कहते हैं। पृथ्वी पश्चिम से पूर्व दिशा में घूमती है और एक घूर्णन पूरा करने में 23 घण्टे, 56 मिनट और 4.091 सेकेण्ड का समय लेती है। इसी से दिन व रात होते हैं।
  • परिक्रमण : – पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अंडाकार पथ पर 365 दिन, 5 घण्टे, 48 मिनट व 45.51 सेकेण्ड में एक चक्कर पूरा करती है, जिसे उसकी परिक्रमण गति कहते हैं। पृथ्वी की इस गति की वजह से ऋतु परिवर्तन होता है। इसी को 6 घंटे जोड़-जोड़ कर जो एक दिन बढ़ता है। वह हर चौथे साल फ़रवरी में जोड़ दिया जाता है। वही फ़रवरी का महीना 29 दिन का होता है। इसी को लिप ईयर कहते हैं।

पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह – Earth Satellite in Hindi

चन्द्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है। यह सौरमंडल का पाचवाँ सबसे विशाल प्राकृतिक उपग्रह है जिसका व्यास पृथ्वी का एक चौथाई तथा द्रव्यमान 1/81 है।

पृथ्वी की धुरी और वायुमंडल –

पृथ्वी स्वयं की ही धुरी पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है। सूरज के चारो तरफ चक्कर लगाते हुए भी धरती का इसी तरह अपनी अक्ष पर झुकाव रहता है। पृथ्वी के इसी झुकाव के रहते ही मौसम में बदलाव आते है। साल भर में एक समय धरती का उत्तरी गोलार्ध सूरज की ओर झुका हुआ रहता है. और दक्षिणी गोलार्ध की दूरी भी सूर्य से काफी होती है। इस समय उत्तरी गोलार्ध में सूर्य प्रकाश बहुत अधिक पहुँचने पर यहाँ पर ग्रीष्म काल होता है। दक्षिणी गोलार्ध में सूर्य की किरणे तिरछी पड़ने की वजह से यहाँ पर तापमान कम रहता है। शीत ऋतु भी इस वजह से इस समय दक्षिणी गोलार्ध में पड़ने लगती है। ठीक 6 महीने के बाद यह स्थिति पूरी उल्टी हो जाती है. वसंत ऋतु के समय दोनों गोलार्द्धों में लगभग समान सूर्यप्रकाश पाता है।
पृथ्वी के भूतल के आस पास एक बहुत सघन वायुमंडल है। इसमें लगभग 78.09% नाइट्रोजन, 20.95% ऑक्सीजन एवं 1% बाकी अन्य गैस हैं। इन अन्य गैसों में आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड और नीयन आदि हैं. यह वायुमंडल पृथ्वी के जलवायु, मौसम आदि को खूब प्रभावित करता है। यह वायुमंडल आम लोगों को सूर्य की कई तरह की घातक किरणों से बचाता है। इसी के साथ यह वायुमंडल पृथ्वी को मेटेरोइड्स आदि से भी बचाता है. दरअसल पृथ्वी की तरफ आते हुए मेटोर्स अक्सर वायुमंडल से घर्षित होते हुए रास्ते में ही जल के समाप्त हो जाते हैं।

पृथ्वी के बारे में रोचक जानकारियां – Earth Facts In Hindi 

  • 22 अप्रैल 1970 को अमेरिका में सबसे पहले Earth Day मनाया गया। जिसके बाद आज पूरी दुनिया मे बनाया जाता हैं।
  • पृथ्वी का विषुवतीय / भूमध्यरेखीय व्यास 12,756 किलोमीटर और ध्रुवीय व्यास 12,714 किलोमीटर है।
  • पृथ्वी अपने अक्ष पर 23 1º/2 झुकी हुई है।
  • पृथ्वी का सम्पूर्ण धरातलीय क्षेत्रफल 510,100,500 वर्ग किमी हैं, जिसमे भूमि क्षेत्रफल – 14,84,00,000 वर्ग किमी हैं और जलीय क्षेत्रफल – 36,13,00,000 वर्ग किमी (71%) हैं।
  • पृथ्वी पर 97 % पानी खारा है या पीने लायक नहीं है और मात्र 3% ही पीने लायक साफ़ पानी है।
  • सूर्य का प्रकाश धरती पर पहुँचने में 8 मिनट 18 सेकंड लगते हैं।
  • पृथ्वी आकाश गंगा का टैकटोनिक प्लेटों की व्यवस्था वाला एकमात्र ग्रह है।
  • वैज्ञानिकों का मानना हैं की आज से 450 करोड़ साल पहले, सौर्य मंडल में मंगल के आकार का एक ग्रह था। जो कि पृथ्वी के साथ एक ही ग्रहपथ पर सुर्य की परिक्रमा करता था। मगर यह ग्रह किसी कारण धरती से टकराया और एक तो धरती मुड़ गई और दूसरा इस टक्कर के फलस्वरूप जो पृथ्वी का हिस्सा अलग हुआ उससे चाँद बन गया।
  • पृथ्वी के भू-भाग का सिर्फ 11 प्रतीशत हिस्सा ही भोजन उत्पादित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • हर वर्ष लगभग 30,000 आकाशीय पिंड धरती के वायुमंडल मे दाखिल होते हैं। पर इनमें से ज्यादातर धरती के वायुमंडल के अंदर पहुँचने पर घर्षण के कारण जलने लगते है जिन्हें लोग ‘टूटता हुआ तारा’ कह कर पुकारते हैं।
  • 1989 में रूस में मनुष्य द्वारा सबसे ज्यादा गहरा गड्ढा खोदा गया था। जिसकी गहराई 12.262 किलोमीटर थी।
  • पृथ्वी के केंद्र में इतना सोना मौजूद है जिससे 1.5 फीट की चादर से धरती की पूरी सतह को ढंका जा सकता है।
  • धरती पे मौजूद हर जीव में कार्बन जरूर है।

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