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मराठा साम्राज्य का इतिहास और रोचक तथ्य / History of Marathas and Warriors in Hindi

मराठा साम्राज्य का इतिहास और रोचक तथ्य / History of Marathas and Warriors in Hindi

Maratha Empire / मराठा साम्राज्य या मराठा महासंघ एक भारतीय साम्राज्यवादी शक्ति थी जो 1674 से 1818 तक अस्तित्व में रही। मराठा साम्राज्य की नींव शिवाजी ने 1674 में डाली। मराठा लोगों को ‘महरट्टा’ या ‘महरट्टी’ भी कहा जाता है, भारत के वे प्रमुख लोग, जो इतिहास में क्षेत्र रक्षक योद्धा और हिन्दू धर्म के समर्थक के रूप में विख्यात हैं, इनका गृहक्षेत्र, आज का मराठी भाषी क्षेत्र महाराष्ट्र राज्य है, जिसका पश्चिमी क्षेत्र समुद्र तट के किनारे मुंबई (भूतपूर्व बंबई) से गोवा तक और आंतरिक क्षेत्र पूर्व में लगभग 160 किमी. नागपुर तक फैला हुआ था। यह साम्राज्य 28 लाख वर्गकिलोमीटर तक फैला था।



मराठा साम्राज्य का इतिहास – Maratha Empire History In Hindi

साम्राज्य की स्थापना का श्रेय ‘शाहजी भोंसले’ तथा पुत्र ‘शिवाजी’ को है। जैसा कि पता चलता है कि कुछ समय तक शाहजी ने मुग़लों को चुनौती दी। अहमदनगर में उसका इतना प्रभाव था कि शासकों कि नियुक्ति में भी उसका ही हाथ होता था। लेकिन 1636 की संधि के अंतर्गत शाहजी को उन क्षेत्रों को छोड़ना पड़ा, जिन पर उसका प्रभाव था। उसने बीजापुर के शासक की सेवा में प्रवेश किया और अपना ध्यान कर्नाटक की ओर लगाया। उस समय की अशांत स्थिति का लाभ उठाकर शाहजी ने बंगलौर में अर्द्ध-स्वायत्त राज्य की स्थापना का प्रयत्न किया। इसके पहले गोलकुण्डा का एक प्रमुख सरदार मीर जुमला कोरोमंडल तट के एक क्षेत्र पर अपना अधिकार क़ायम करने में सफल हो गया था। इसके अलावा कुछ अबीसीनियाई सरदार पश्चिम तट पर अपना शासन क़ायम करने में सफल हो गये थे। पूना के आस-पास के क्षेत्रों में अपना शासन स्थापित करने के शिवाजी के प्रयासों की यही पृष्ठभूमि थी।
1674 में शिवाजी ने मराठा साम्राज्य की नीव डाली उसने कई साल औरंगज़ेब की मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। दरअसल जब औरंगजेब के दरबार में अपमानित हुए वीर शिवाजी आगरा में उसकी कैद से बचकर भागे थे तो उन्होंने एक ही सपना देखा था, पूरे मुगल साम्राज्य को कदमों पर झुकाने का। मराठा ताकत का अहसास पूरे हिंदुस्तान को करवाने का। और यह सपना उनका पूरा हुआ, बाद में आये पेशवाओनें उत्तर भारत तक बढाया, ये साम्राज्य 1818 तक चला और लगभग पूरे भारत में फैल गया।

खासकर पेशवा बाजीराव प्रथम ने। उन्नीस-बीस साल के उस युवा ने तीन दिन तक दिल्ली को बंधक बनाकर रखा। मुगल बादशाह की लाल किले से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं हुई। यहां तक कि 12वां मुगल बादशाह और औरंगजेब का नाती दिल्ली से बाहर भागने ही वाला था कि बाजीराव मुगलों को अपनी ताकत दिखाकर वापस लौट गया।
बाजीराव पहला ऐसा योद्धा था, जिसके समय में 70 से 80 फीसदी भारत पर उसका सिक्का चलता था। वो अकेला ऐसा राजा था जिसने मुगल ताकत को दिल्ली और उसके आसपास तक समेट दिया था। पूना शहर को कस्बे से महानगर में तब्दील करने वाला बाजीराव बल्लाल भट्ट था, सतारा से लाकर कई अमीर परिवार वहां बसाए गए। निजाम, बंगश से लेकर मुगलों और पुर्तगालियों तक को कई कई बार शिकस्त देने वाली अकेली ताकत थी बाजीराव की। शिवाजी के नाती शाहूजी महाराज को गद्दी पर बैठाकर बिना उसे चुनौती दिए, पूरे देश में उनकी ताकत का लोहा मनवाया था बाजीराव ने।
हिंदू पद पादशाही का सिद्धांत भी बाजीराव प्रथम ने दिया था। हर हिंदू राजा के लिए आधी रात मदद करने को तैयार था वो, पूरे देश का बादशाह एक हिंदू हो, उसके जीवन का लक्ष्य ये था, लेकिन जनता किसी भी धर्म को मानती हो उसके साथ वो न्याय करता था। उसकी अपनी फौज में कई अहम पदों पर मुस्लिम सिपहसालार थे, लेकिन वो युद्ध से पहले हर हर महादेव का नारा भी लगाना नहीं भूलता था। उसे टैलेंट की इस कदर पहचान थी कि उसके सिपहसालार बाद में मराठा इतिहास की बड़ी ताकत के तौर पर उभरे। होल्कर, सिंधिया, पवार, शिंदे, गायकवाड़ जैसी ताकतें जो बाद में अस्तित्व में आईं, वो सब पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट की देन थीं।

मराठा महासंघ –

इसका सूत्रपात दूसरे पेशवा बाजीराव प्रथम (1720-40 ई.) के शासनकाल में हुआ। एक ओर सेनापति दाभाड़े के नेतृत्व में मराठा क्षत्रिय सरदारों के विरोध तथा दूसरी ओर उत्तर तथा दक्षिण में मराठा साम्राज्य का शीघ्रता से विस्तार होने के कारण पेशवा बाजीराव प्रथम को अपने उन स्वामीभक्त समर्थकों पर अधिक निर्भर रहना पड़ा, जिनकी सैनिक योग्यता युद्ध भूमि में प्रमाणित हो चुकी थी। फलस्वरूप उसने अपने बड़े-बड़े क्षेत्र इन समर्थकों के अधीन कर दिये।

मराठा युद्ध –

1775-82, 1803-05, 1817-18

ब्रिटिश सेनाओं और मराठा महासंघ के बीच हुए तीन युद्ध, जिनका परिणाम था महासंघ का विनाश। पहला युद्ध(1775-82) रघुनाथ द्वारा महासंघ के पेशवा (मुख्यमंत्री) के दावे को लेकर ब्रिटिश समर्थन से प्रारम्भ हुआ। जनवरी 1779 में बडगांव में अंग्रेज़ पराजित हो गए, लेकिन उन्होंने मराठों के साथ सालबाई की संधि (मई 1782) होने तक युद्ध जारी रखा; इसमें अंग्रेज़ों को बंबई (वर्तमान मुंबई) के पास सालसेत द्वीप पर कब्जे क रूप में एकमात्र लाभ मिला।
दूसरा युद्ध (1803-05)
पेशवा बाजीराव द्वितीय के होल्करों (एक प्रमुख मराठा कुल) से हारने और दिसम्बर, 1802 में बेसीन की संधि के तहत अंग्रेज़ों का संरक्षण स्वीकार करने से प्रारम्भ हुआ। सिंधिया तथा भोंसले परिवारों ने इस समझौते का विरोध किया, लेकन वे क्रमशः लसपाड़ी व दिल्ली में लॉर्ड लेक और असाय व अरगांव में सर आर्थर वेलेज़ली (जो बाद में वैलिंगटन के ड्यूक बने) के हाथों पराजित हुए। उसके बाद होल्कर परिवार भी इसमें शामिल हो गया और मध्य भारत व राजस्थान के क्षेत्र में मराठा बिल्कुल आज़ाद हो गए।
तीसरा युद्ध (1817-18)
ब्रिटिश गवर्नर-जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स द्वारा पिंडारी दस्युओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के क्रम में मराठा क्षेत्र के अतिक्रमण से प्रारम्भ हुआ। पेशवा की सेनाओं ने भोंसले और होल्कर के सहयोग से अंग्रेज़ों का मुक़ाबला किया (नवम्बर 1817), लेकिन सिंधिया ने इसमें कोई भूमिका नहीं निभाई। बहुत जल्दी मराठे हार गए, जिसके बाद पेशवा को पेंशन देकर उनके क्षेत्र का ब्रिटिश राज्य में विलय कर लिया गया। इस तरह भारत में ब्रिटिश राज्य का आधिपत्य पूर्णरूप से स्थापित हो गया।

मराठा शासन और सैन्य व्यवस्था –

  • हिन्दू तथा मुसलमान शासन एवं सैन्य व्यवस्था का मिश्रित रूप। इसका सूत्रपात शिवाजी ने किया, इसमें समस्त राज्यशक्ति राजा के हाथ में रहती थी। वह अष्टप्रधानों की सहायता से शासन करता था, जिनकी नियुक्ति वह स्वयं करता था।
  • अष्टप्रधानों के नायबों की नियुक्ति भी राजा करता था। मालगुजारी की वसूली का कार्य पटेलों के हाथों में था। भूमि की उपज का एक तिहाई भाग मालगुजारी के रूप में वसूल किया जाता था।
  • शिवाजी ने शासन व्यवस्था के साथ-साथ सेना की भी व्यवस्था की। सेना में मुख्य रूप से पैदल सैनिक तथा घुड़सवार होते थे। यह सेना छापामार युद्ध तथा पर्वतीय क्षेत्रों में लड़ने के लिए बहुत उपयुक्त थी। राजा स्वयं सैनिक का चुनाव करता था।

मराठा जाति –

मराठा शब्द का तीन मिलते-जुलते अर्थों में उपयोग होता है-मराठी भाषी क्षेत्र में इससे एकमात्र प्रभुत्वशाली मराठा जाति या मराठों और कुंभी जाति के एक समूह का बोध होता है, महाराष्ट्र के बाहर मोटे तौर पर इससे समूची क्षेत्रीय मराठी भाषी आबादी का बोध होता है, जिसकी संख्या लगभग 6.5 करोड़ है। ऐतिहासिक रूप में यह शब्द मराठा शासक शिवाजी द्वारा 17वीं शताब्दी में स्थापित राज्य और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा 18वीं शताब्दी में विस्तारित क्षेत्रीय राज्य के लिए प्रयुक्त होता है।
मराठा जाति के लोग मुख्यतः ग्रामीण किसान, ज़मींदार और सैनिक थे, कुछ मराठों और कुंभियों ने कभी-कभी क्षत्रिय होने का दावा भी किया और इसकी पुष्टि वे अपने कुल-नाम व वंशावली को महाकाव्यों के नायकों, उत्तर के राजपूत वंशों या पूर्व मध्यकाल के ऐतिहासिक राजवंशों से जोड़कर करते हैं, मराठा और कुंभी समूह की जातियाँ तटीय, पश्चिमी पहाड़ियों और दक्कन के मैदान के उपसमूहों में बँटी हुई हैं और उनके बीच आपस में वैवाहिक संबंध कम ही होते हैं। प्रत्येक उप क्षेत्र में इन जातियों के गोत्रों को विभिन्न समाज मंडलों में क्रमशः घटते हुए क्रम में वर्गीकृत किया गया है। सबसे बड़े सामाजिक मंडल में 96 गोत्र शामिल हैं। जिनमें सभी असली मराठा बताए जाते हैं। लेकिन इन 96 गोत्रों की सूचियों में काफ़ी विविधता और विवाद हैं।

हस्तियां –

सातारा वंश
  • छत्रपति शिवाजी (1627-1680)
  • छत्रपति सम्भाजी (1680-1689)
  • छत्रपति राजाराम (1689-1700)
  • महारनी ताराबाई (1700-1707)
  • छत्रपति शाहू (1707-1749) उर्फ शिवाजी द्वितीय, छत्रपति संभाजी का बेटा
  • छत्रपति रामराज (छत्रपति राजाराम और महारानी ताराबाई का पौत्र)
कोल्हापुर वंश
  • महारनी ताराबाई (1675-1761)
  • शिवाजी द्वितीय (1700–1714)
  • शिवाजी तृतीय (1760–1812)
  • राजाराम प्रथम (1866–1870)
  • शिवाजी पंचम (1870–1883)
  • शाहजी द्वितीय (1883–1922)
  • रजारम द्वितीय (1922–1940)
  • शाहोजी द्वितीय (1947–1949)
पेशवा
  • बालाजी विश्वनाथ (1713 – 1720)
  • बाजीराव प्रथम (1720–1740)
  • बालाजी बाजीराव (1740–1761)
  • पेशवा माधवराव (1761–1772)
  • नारायणराव पेशवा (1772–1773)
  • रघुनाथराव पेशवा (1773–1774)
  • सवाई माधवराव पेशवा (1774–1795)
  • बाजीराव द्वितीय (1796–1818)
  • अमृतराव पेशवा
  • नाना साहिब

मराठा साम्राज्य के बारे में रोचक तथ्य – Facts About Maratha Empire In Hindi

  1. शिवाजी ने सर्वप्रथम बीजापुर के तोरण नामक पहाडी किले पर 1646 ई० में अधिकार कर लिया था।
  2. शिवाजी ने जावली के किले को मराठा सरदार चन्‍द्रराव मोरे के कब्‍जे से 25 जनवरी 1656 ई० को छीन लिया था।
  3. शिवाजी का राज्‍यभिषेेक 16 जून 1674 ई० को रायगढ में हुुआ था।
  4. मराठा साम्राज्‍य की सबसे बहादुर महिला ताराबाई थी।
  5. शिवाजी के बाद बाजीराव प्रथम ऐसा दूसरा मराठा था जिसे गुरल्लिा युद्ध प्रणाली को अपनाया।
  6. अंतिम पेशवा राघेेवा का पुत्र बाजीराव द्वतीय था जो अंग्रेजों की सहायता से पेशवा बना था।
  7. मराठा शासक शाहू जी के शासन काल को पेशवाओं के शासनकाल के नाम से जाना जाता है।
  8. सर रिचर्ड टेम्‍पल ने मराठा साम्राज्‍य मैग्‍नाकार्टा की संज्ञा दी थी।

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