Headlines
Loading...
आदि शंकराचार्य जयंती एवम जीवन परिचय - Adi Shankaracharya biography Jayanti in hindi

आदि शंकराचार्य जयंती एवम जीवन परिचय - Adi Shankaracharya biography Jayanti in hindi

वैशाख मास का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। इस माह में अनेक धार्मिक गुरुओं, संत कवियों सहित स्वयं भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार धारण किया। वैशाख कृष्ण एकादशी वल्लाभाचार्य तो शुक्ल तृतीया जिसे अक्षय तृतीया कहते हैं कि दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ। इसी कड़ी में वैशाख शुक्ल पंचमी भी बहुत ही भाग्यशाली तिथि है। इसी दिन श्री नाथ जी के परम भक्त संत महाकवि सूरदास का जन्म हुआ तो यही दिन हिंदू धर्म की ध्वजा को देश के चारों कौनों तक पंहुचाने वाले, अद्वैत वेदांत के मत को शास्त्रार्थ द्वारा देश के हर कौने में सिद्ध करने वाले, भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले आदि शंकराचार्य ने जन्म लिया। वैशाख शुक्ल पंचमी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार वर्ष 2018 में 20 अप्रैल को है। आइये शंकाराचार्य जयंती के अवसर पर जानते हैं आदि शंकराचार्य की जीवनी और उनके प्रयासों से हिंदू धर्म को मिली एक नई चेतना के बारे में।




आदि शंकराचार्य एक महान हिन्दू दार्शनिक एवं धर्मगुरु थे. आदि शंकराचार्य जी का जन्म 788 ईसा पूर्व केरल के कालड़ी में एक नंबूदरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इसी उपलक्ष में वैशाख मास की शुक्ल पंचमी के दिन आदि गुरु शंकराचार्य जयंती मनाई जाती है. इस वर्ष आद्यगुरू शंकराचार्य जयंती
9 मई 2019, के दिन मनाई जाएगी. हिन्दू धार्मिक मान्यता अनुसार इन्हें भगवान शंकर का अवतार माना जाता है यह अद्वैत वेदान्त के संस्थापक और हिन्दू धर्म प्रचारक थे. आदि शंकराचार्य जी जीवनपर्यंत  सनातन धर्म के जीर्णोद्धार में लगे रहे उनके प्रयासों ने हिंदु धर्म को नव चेतना प्रदान की.
आदि शंकराचार्य जयन्ती के पावन अवस्रप पर शंकराचार्य मठों में पूजन हवन का आयोजन किया जाता है. देश भर में आदि शंकराचार्य जी को पूजा जाता है. अनेक प्रवचनों एवं सतसंगों का आयोजन भी होता है. सनातन धर्म के महत्व पर की उपदेश दिए जाते हैं और चर्चा एवं गोष्ठी भी कि जाती है.
मान्यता है कि इस पवित्र समय अद्वैत सिद्धांत का पाठ करने से व्यक्ति को परेशानियों से मुक्ति प्राप्त होती है. इस दिन धर्म यात्राएं एवं शोभा यात्रा भी निकाली जाती है.आदि शंकराचार्य जी ने अद्वैत वाद के सिंद्धांत को प्रतिपादित किया जिस कारण  आदि शंकराचार्य जी को हिंदु धर्म के महान प्रतिनिधि के तौर पर जाना जाता है, आदि शंकराचार्य, जी को जगद्गुरु  एवं शंकर भगवद्पादाचार्य के नाम से भी जाना जाता है.

आदि शंकराचार्य’ जन्म कथा | Adi Shankaracharya Birth Story


असाधारण प्रतिभा के धनी आद्य जगदगुरू शंकराचार्य का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी के पावन दिन हुआ था. दक्षिण के कालाड़ी ग्राम में जन्में शंकर जी आगे चलकर ‘जगद्गुरु आदि शंकराचार्य’ के नाम से विख्यात हुए. इनके पिता शिवगुरु नामपुद्रि के यहाँ जब विवाह के कई वर्षों बाद भी कोई संतान नहीं हुई, तो इन्होंने अपनी पत्नी विशिष्टादेवी सहित संतान प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने के लिए से दीर्घकाल तक भगवान शंकर की आराधना की इनकी श्रद्धा पूर्ण कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा.

शिवगुरु ने प्रभु शंकर से एक दीर्घायु सर्वज्ञ पुत्र की इच्छा व्यक्त की. तब भगवान शिव ने कहा कि ‘वत्स, दीर्घायु पुत्र सर्वज्ञ नहीं होगा और सर्वज्ञ पुत्र दीर्घायु नहीं होगा अत: यह दोनों बातें संभव नहीं हैं तब शिवगुरु ने सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति की प्रार्थना की और भगवान शंकर ने उन्हें सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति का वरदान दिया तथा कहा कि मैं स्वयं पुत्र रूप में तुम्हारे यहाँ जन्म लूंगा.
इस प्रकार उस ब्राह्मण दंपती को संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्त हुई और जब बालक का जन्म हुआ तो उसका नाम शंकर रखा गया शंकराचार्य ने शैशव में ही संकेत दे दिया कि वे सामान्य बालक नहीं है. सात वर्ष की अवस्था में उन्होंने वेदों का पूर्ण अध्ययन कर लिया था, बारहवें वर्ष में सर्वशास्त्र पारंगत हो गए और सोलहवें वर्ष में ब्रह्मसूत्र- भाष्य कि रचना की उन्होंने शताधिक ग्रंथों की रचना शिष्यों को पढ़ाते हुए कर दी अपने इन्हीं महान कार्यों के कारण वह आदि गुरू शंकराचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए.

आदि शंकराचार्य जयंती महत्व | Significance of Adi Shankaracharya Jayanti


आदि शंकराचार्य जयन्ती के दिन शंकराचार्य मठों में पूजन हवन किया जाता है और पूरे देश में सनातन धर्म के महत्व पर विशेष कार्यक्रम किए जाते हैं. मान्यता है कि आदि शंकराचार्य जंयती के अवसर पर अद्वैत सिद्धांत का किया जाता है.

इस अवसर पर देश भर में शोभायात्राएं निकली जाती हैं तथा जयन्ती महोत्सव होता है जिसमें बडी संख्या में श्रद्वालु भाग लेते हैं तथा यात्रा करते समय रास्ते भर गुरु वन्दना और भजन-कीर्तनों का दौर रहता है. इस अवसर पर अनेक समारोह आयोजित किए जाते हैं जिसमें वैदिक विद्वानों द्वारा वेदों का सस्वर गान प्रस्तुत किया जाता है और समारोह में शंकराचार्य विरचित गुरु अष्टक का पाठ भी किया जाता है.

आदि शंकाराचार्य संक्षिप्त जीवन परिचय


आदि शंकराचार्य एक ऐसे धर्मगुरु माने जाते हैं जिन्होंनें हिंदू धर्म की पुन:स्थापना की। जिन्होंने अद्वैत वेदांत मत का प्रचार किया। देश के चारों कौनों में शक्तिपीठों की स्थापना कर हिंदू धर्म की ध्वज़ा दुनिया भर में फहराई। उनका जीवन काल भले ही छोटा रहा हो लेकिन उनके जीवन एवं विचारों ने भारतीय धर्म दर्शन को एक नई चेतना प्राप्त की। इनका जन्म 788 ई.पू. माना जाता है। केरल का कालड़ी जो उस समय मालाबार प्रांत में होता था नामक स्थान पर एक नंबूदरी ब्राह्मण परिवार में आदि शंकराचार्य का जन्म माना जाता है। इनके जन्म की कथा कुछ इस प्रकार बताई जाती है।
वैशाख शुक्ल पंचमी के दिन दक्षिण के कालाड़ी ग्राम में शिवगुरु नाम के एक ब्राह्मण निवास करते थे। विवाह होने के कई सालों बाद भी उनके यहां कोई संतान नहीं हुई। शिवगुरु ने पत्नी विशिष्टादेवी के साथ संतान प्राप्ति हेतु भगवान शंकर की आराधना की। इनके कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन दिये और वर मांगने को कहा। तब शिवगुरु ने भगवान शिव से एक ऐसी संतान की कामना की जो दीर्घायु भी हो और जिसकी ख्याति विश्व भर में हो जो सर्वज्ञ बनें। तब भगवान शिव ने कहा कि या तो तुम्हारी संतान दीर्घायु हो सकती है या फिर सर्वज्ञ, जो दीर्घायु होगा वो सर्वज्ञ नहीं होगा और अगर सर्वज्ञ संतान चाहते हो तो वह दीर्घायु नहीं होगी। तब शिवगुरु ने दीर्घायु की बजाय सर्वज्ञ संतान की कामना की। कहा जाता है कि भगवान शिव ने फिर स्वयं शिवगुरु की संतान के रूप में जन्म लेने का वर दिया।
इसके पश्चात समय आने पर शिवगुरु और विशिष्टादेवी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। भगवान शंकर की तपस्या के प्रताप इस बालक का नाम भी माता-पिता ने शंकर रखा। कहते हैं पूत के पांव पलने में ही नज़र आने लगते हैं फिर वे तो स्वयं भगवान शंकर का वरदान थे अत: शैशव काल में ही यह संकेत तो माता-पिता को दिखाई देने लगे थे कि यह बालक तेजस्वी है, सामान्य बालकों की तरह नहीं है। हालांकि शैशवकाल में ही पिता शिवगुरु का साया सर से उठ गया। बालक शंकर ने भी माता की आज्ञा से वैराग्य का रास्ता अपनाया और सत्य की खोज में चल पड़े। मान्यता है कि मात्र सात वर्ष की आयु में उन्हें वेदों का संपूर्ण ज्ञान हो गया था। बारह वर्ष की आयु तक आते-आते वे शास्त्रों के ज्ञाता हो चुके थे। सोलह वर्ष की अवस्था में तो आप ब्रह्मसूत्र भाष्य सहित सौ से भी अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके थे। इस आप शिष्यों को भी शिक्षित करने लगे थे। इसी कारण आपको आदि गुरु शंकाराचार्य के रूप में भी प्रसिद्धि मिली।

शंकराचार्य पीठों की स्थापना (Shankaracharay Peeth)


देश के चारों कौनों में अद्वैत वेदांत मत का प्रचार करने के साथ ही आपने पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों दिशाओं में मठों की स्थापना की इन्हें पीठ भी कहा जाता है।
वेदांत मठ – दक्षिण भारत में आपने वेदांत मठ की स्थापना श्रंगेरी (रामेश्वरम) में की। यह आप द्वारा स्थापित प्रथम मठ था इसे ज्ञानमठ भी कहा जाता है।
गोवर्धन मठ – इसे आपने पूर्वी भारत (जगन्नाथपुरी) में स्थापित किया। यह आदि शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित दूसरा मठ था।
शारदा मठ – पश्चिम भारत (द्वारकापुरी) में आपने तीसरे मठ की स्थापना की इसे कलिका मठ भी कहा जाता है।
बद्रीकाश्रम – इसे ज्योतिपीठ मठ कहा जाता है। यह आप द्वारा उत्तर भारत में स्थापित किया गया।
इस प्रकार चारों दिशाओं में मठों की स्थापना कर आपने धर्म का प्रचार पूरे देश में किया। आप जहां भी जाते वहां शास्त्रार्थ कर लोगों को उचित दृष्टांतों के माध्यम से तर्कपूर्ण विचार प्रकट कर अपने विचारों को सिद्ध करते। आपने तत्कालीन विद्वान मिथिला के मंडन मिश्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया लेकिन कहा जाता है कि मण्डन मिश्र की पत्नी भारती ने आपको शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया। आपने पुन: रतिज्ञान प्राप्त किया और तत्पश्चात उन्हें भी शास्त्रार्थ में पराजित किया।

आदि शंकराचार्य जी के अनमोल विचार – (Shankaracharya Valuable thoughts)


आपने देश भर में भ्रमण कर देश की सभ्यता, संस्कृति, जन-जीवन को तो समझा ही साथ ही मानवता के कल्याण के लिये देश की बेहतरी के लिये देश में मौजूद विविधताओं का सम्मान करते हुए एक नई राह लोगों को दिखाकर उनका मार्ग दर्शन किया। भारतीय जीवन दर्शन को समझने की एक नई दृष्टि आदि शंकराचार्य जी ने अपनी अल्पायु में दी। आपके कुछ अनमोल विचार इस प्रकार हैं –
आपका मानना था कि स्वच्छ मन सबसे बड़ा तीर्थ है। यदि व्यक्ति अपने मन की शुद्धि कर ले तो उसे कहीं बाहर तीर्थ आदि पर जाने की आवश्यकता नहीं है।
आपका मानना था आत्मा स्वयं ज्ञान का स्वरूप है इसे किसी अतिरिक्त ज्ञान की आवश्यकता नहीं है जिस तरह जलते हुए दीपक को अन्य रोशनी के लिये अन्य दीप की आवश्यकता नहीं होती।
आपने संदेश दिया कि यह संसार एक स्वपन की तरह है जो मोह-माया से भरा पड़ा है जैसे ही हमारी अज्ञान रूपी निद्रा टूटती और ज्ञान रूपी प्रकाश हमें मिलता है उसी समय हम इस स्वप्न के सार को समझ जाते हैं।
आपने सत्य के बारे में बताया है कि जो सदा से था, सदा से है और सर्वदा रहेगा वही एकमात्र सत्य है। 

Related Articles

0 Comments: