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भारत का एकमात्र ज्वालामुखी क्षेत्र, जहां आज भी लावा देखा जा सकता है, जानिए इस समूह द्वीप के रोचक तथ्य

भारत का एकमात्र ज्वालामुखी क्षेत्र, जहां आज भी लावा देखा जा सकता है, जानिए इस समूह द्वीप के रोचक तथ्य

भारत देश में बहुत सी ऐसी जगह हैं जहां मानव जनजाति निवास करती है और उनका रहन-सहन दूसरे लोगों से एकदम अलग होता है. ऐसा ही एक द्वीप है अंडमान-निरोबर जो लगभग 400 छोटे-बड़े द्वीपों से मिलकर बना है. भारत का यह केन्द्र शासित प्रदेश है. जो कि बंगाल की खाड़ी के दक्षिण में हिन्द महासागर में स्थित है. यहां की राजधानी पोर्ट ब्लेयर है. अंडमान शब्द मलय भाषा के शब्द हांदुमन से आया है जो हिन्दू देवता हनुमान के नाम का परिवर्तित रूप है. निकोबार शब्द भी इसी भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है नग्न लोगों की भूमि. इसे गार्डन ऑफ ईडन भी कहा जाता है. कहीं ये बात लिखी है कि श्रीलंका के आसपास ही कहीं ‘आदम’ का जन्म हुआ था. तो चलिए आज आपको अंडमान-निकोबर द्वीप समूह के बारे में कुछ जानकारियां देते हैं…



1. इस द्वीप समूह पर 17वीं सदी में मराठों द्वारा अधिकार किया गया था. इसके बाद इस पर अंग्रेजों का शासन हो गया और बाद में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान द्वारा इस पर अधिकार कर लिया गया.
2. कुछ समय के लिये यह द्वीप नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज के अधीन भी रहा था. और जनरल लोकनाथन यहाँ के गवर्नर रहे थे. साल 1947 में ब्रिटिश सरकार से मुक्ति के बाद यह भारत का केन्द्र शासित प्रदेश बना.
3. ब्रिटिश शासन इस स्थान का प्रयोग स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में अपनी दमन की नीति के अंतर्गत क्रांतिकारियों को भारत से दूर जेल में रखने के लिये करता था. इसी कारण से यह आंदोलनकारियों के मध्य ‘कालापानी’ के नाम से जाना जाता था.
4. इसके लिये पोर्ट ब्लेयर में एक अलग जेल सेल्‍यूलर जेल का निर्माण किया गया जो ब्रिटिश काल में भारत के लिये साइबेरिया की तरह माना जाता था.
5. 26 दिसंबर, 2004 को सुनामी लहरों के कहर से इस द्वीप पर 6000 से ज्यादा लोग मारे गये थे.
6. अण्डमान व निकोबार द्वीपसमूह में उत्तर और मध्य अण्डमान जिला, दक्षिण अण्डमान जिला, निकोबार जिला ये तीन जिले हैं.
7. इन द्वीपों के वनों में रहने वाले मूल आदिवासी जनजातियाँ शिकार और मछली पकड़ने का काम करते हैं. इनकी चार नेग्रीटो जनजातियां हैं ग्रेट अंडमानी, ओंज, जरावा, सेंटीनेलेस. जो द्वीप समूहों के अंडमान द्वीपसमूह में पायी जाती है और दो मंगोली जनजातियां निकोबारी शॉम्‍पेन्‍स, जो द्वीप समूह के निकोबार द्वीप समूह में पाई जाती है.
8. इस द्वीप समूह प्रदेश में कुल 51,694.35 हेक्‍टेयर भूमि में खेती की जाती है. जिसमें से 8,068.71 हेक्‍टेयर भूमि सुनामी/भूकंप से तबाह हो गई है.
9. इसमें से 2,177.70 हेक्‍टेयर में धान व अन्‍य फ़सलें तथा 5,891.01 हेक्‍टेयर में पौधों की फ़सल नष्‍ट हो गई. 4206.64 हेक्‍टेयर खेती की भूमि स्‍थायी रूप से पानी में डूब गई है.
10. धान यहाँ का प्रमुख फ़सल है जो अंडमान द्वीप समूह में उगाया जाता है. निकोबार द्वीप समूह की मुख्‍य नकदी फ़सल नारियल और सुपारी है. रबी की फ़सल में दालें, तिलहन और सब्जियां उगाई जाती हैं जिसके बाद धान की फ़सल बोई जाती है.
11. यहाँ के किसान पहाडी ज़मीन पर विभिन्न प्रकार के फल- आम, सेपोटा, संतरा, केला, पपीता, अनान्‍नास और कंदमूल उगाते हैं. यहाँ बहुफ़सल व्‍यवस्‍था के अधीन मसाले, जैसे – मिर्च, लौंग, जायफल तथा दालचीनी आदि उगाए जाते हैं. इन द्वीपों में रबड, रेड आयल, ताड़ तथा काजू आदि भी कहीं कहीं उगाए जाते हैं.
12. इन द्वीपों में 96 वन्‍य जीव अभयारण्‍य, नौ राष्‍ट्रीय पार्क तथा एक जैव संरक्षित क्षेत्र (बायो रिजर्व केन्द्र) है जिसमें स्‍तनपायी, पक्षी, सरीसृप, समुद्री जीव, मूंगा प्रवाल मुख्य रूप से हैं.
13. यहां मछली का मुख्यरूप से व्यापार किया जाता है और लघु उद्योग में पेंट, वार्निश, छोटी आटा पीसने की चक्कियां, शीतल पेय और शराब, स्‍टील, फर्नीचर, रेडीमेड कपडे, लोहे के दरवाज़े, ग्रिल का काम होता हैं.
14. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एक पर्यावरण अनुकूल सुरक्षित पर्यटक स्‍थल के रूप में प्रसिद्ध है. यहाँ लोग सेल्‍यूलर जेल, रॉस द्वीप तथा हैवलॉक द्वीप जैसे विशिष्‍ट स्‍थानों को देखना पसंद करते हैं.
15. समुद्र तट पर बने रिसार्ट्स, जल क्रीड़ा केंद्र, पानी के साहसिक खेल, ट्रेकिंग, आईलैंड कैंपिंग, प्रकृति के मध्य निवास (नेचर ट्रेल) स्‍कूबा डाइविंग जैसे साहसिक पर्यटन यहाँ उपलब्ध हैं.
16. भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्र ‘बैरन द्वीप’ है. यह द्वीप लगभग 3 किमी. में फैला है. यह अण्डमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से लगभग 500 किलोमीटर उत्तर पूर्व में ‘बंगाल की खाड़ी’ में स्थित है.
17. यहाँ ज्वालामुखी में विस्फोट क़रीब 180 साल शान्त रहने के बाद हुए थे. ये विस्फोट साल 1991, 1994-95 और 2005 में हुए. इस विस्फोट के दौरान इसमें से साल 2006 तक लगातार लावा निकलता रहा. इसे वन विभाग की आज्ञा लेने के बाद ही देखा जा सकता है.

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