इस सृष्टि की रचना करने वाले महादेव के हमारे देश में कई मंदिर हैं. जिनमें लाखों भक्त सुबह-शाम उनकी पूजा और आराधना के लिए आते हैं. हर मंदिर की अपनी खासियत होती है और दुनिया में अलग-अलग प्रकार के शिवलिंग भी देखने को मिलते हैं. वैसे तो आपने महादेव के कई मंदिर देखें होंगे और कई मंदिरों के बारे में सुना भी होगा. लेकिन क्या आपने ऐसे शिवलिंग के बारे में सुना है जिसमें आप अपनी छवि देख सकतें हैं? उत्तराखंड के मसूरी से 75 किमी उत्तर में लखमंडल गांव में एक मंदिर परिसर है. माना जाता है कि लाक्षाग्रह से बाहर निकलने के लिए पांडवों ने जिस गुफा का इस्तेमाल किया, वो लखमंडल में खत्म होती थी. यहां पहुंचने के बाद पांडवों ने कुछ समय के लिए यहीं रहने का फैसला किया और इस जगह को लखमंडल नाम दिया. लखमंडल का तात्पर्य लाखों मंदिरों से है, जबकि वहां रहने वाले निवासियों का कहना है कि पांडवों ने लाक्षाग्रह की घटना के आधार पर इस जगह का नाम रखा था. लखमंडल में निवास के दौरान पांडवों ने इस मंदिर को बनवाया.
लखमंडल पौराणिक इतिहास और हिंदुत्व का बेहद शानदार उदाहरण पेश करता है. लखमंडल में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर परिसर है. इस मंदिर में कई छोटे-बड़े शिवलिंग देखने को मिलते है, लेकिन उनमें से सिर्फ़ एक ही शिवलिंग है जो लोगों को ख़ास तौर पर अपनी ओर आकर्षित करता है. जो बात इस शिवलिंग को दूसरों से अलग बनाती है, वो ये है कि यह शिवलिंग इतना चमकदार है कि आप अपनी छवि को इसमें देख सकते हैं. गर्भग्रह में स्थापित ना होने के बावजूद, ग्रैफाइट पत्थर से बने इस शिवलिंग को मुख्य देवता के रूप में पूजा जाता है. कहा जाता है कि यह शिवलिंग द्वापर युग में बनाया गया था और इसकी स्थापना स्वयं युधिष्ठिर ने की थी. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मुताबिक, इसे 12वीं और 13वीं शताब्दी के बीच नागर शैली की वास्तुकला द्वारा बनाया गया था.
पहरेदार दानव और मानव
इसके अलावा मंदिर परिसर में और भी दिलचस्प चीजें हैं. मुख्य पुण्य-स्थल के पास दो मूर्तियां हैं, जिन्हें दानव और मानव के नाम से जाना जाता है. इन्हें मंदिर परिसर के पहरेदार के रूप में देखा जाता हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि किसी का अभी निधन हुआ हो, तो उसे इस परिसर में इन मूर्तियों के सामने लाकर कुछ क्षण के लिए जीवित किया जा सकता है.
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