हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है. हिन्दू धर्म में किसी भी अनुष्ठान या पूजन में त्रिदेव से पहले उनकी पूजा की जाती है, नहीं तो वह पूजन या अनुष्ठान सफल नहीं माना जाता. राक्षस पर विजय प्राप्ति के लिए उनकी पूजा एक बार भगवान शिव ने भी की थी. भगवान गणेश का स्वरुप जितना रोचक है उतनी ही रोचक उनके जीवन से जुड़ी घटनाएं हैं. आइये जानते हैं प्रथम पूज्य गणेश से जुड़ी इन रोचक बातों के बारे में.
भगवान गणेश का जन्म पार्वती जी के मैल से हुआ था.
शिवपुराण में वर्णित कथा के अनुसार माता पार्वती को श्री गणेश की रचना करने के बारे में उनकी सखी जाया और विजय ने कहा था. उनकी सखियों को यह कहना था कि जिस नंदी और सभी गण सिर्फ महादेव की बात मानते हैं.
वैसे आपको भी किसी की रचना करनी चाहिए जो सिर्फ आपकी आज्ञा का पालन करे. तब उन्होंने अपने मैल से भगवान गणेश की रचना की.
पुत्र प्राप्ति के लिए किया था उपवास-
माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुण्यक नाम का व्रत रखा था. इसी उपवास की वजह से उन्हें गणेश की प्राप्ति हुई थी.
कब हुआ था जन्म-
भगवान गणेश का जन्म भादव महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दोपहर 12 बजे हुआ था.
यह हैं शरीर का रंग-
हिन्दू धर्म ग्रंथ शिव पुराण में गणेश के शरीर का रंग लाल और हरा बताया गया है. इसमें लाल रंग शक्ति का और हरा रंग समृध्दि को दर्शाता है.
कैसे पड़ा गणेश नाम-
एक बार भगवान शिव ने क्रोधित होकर उनका मस्तक काट दिया था. तब भगवान विष्णु मस्तक के खोज के लिए गरुड़ पर सवार होकर उत्तर दिशा की ओर गए, उन्होंने देखा कि पुष्पभद्र नदी के किनारे एक हथिनी का बच्चा सो रहा है.
फिर उन्होंने उस बच्चे का सिर काटकर, पार्वती के पुत्र के धड़ पर लगा दिया. तब पार्वती के उस पुत्र का नाम गणेश पड़ गया.
भगवान शिव ने की थी पूजा-
शिव महापुराण में यह लिखा है जब भगवान शिव त्रिपुर राक्षस का वध करने जा रहे थे. रहे थे, तब यह आकाशवाणी हुई कि जब तक वह भगवान गणेश की पूजा नहीं करेंगे, तब तक वह त्रिपुर राक्षस का संहार नहीं कर पायेंगे. आकाशवाणी को सुनकर भगवान शिव ने भद्रकाली को बुलाकर गणेश की पूजा की थी.
कैसे कहलाये एकदंत-
एक बार परशुराम भगवान शिव से मिलने कैलाश पर्वत पर आए और उन्हें गणेश ने यह कहकर रोक दिया कि पिता जी अभी समाधि में हैं. इससे क्रोधित होकर परशुराम ने अपने फरसे से गणेश पर वार कर दिया.
यह फरसा भगवान् शिव ने ही उन्हें दिया था. अपने पिता के दिए हुए शस्त्र की मर्यादा रखने के लिए उन्होंने यह वार अपने दांत पर सह लिया.जिससे उनका एक दांत टूट गया. तब से उन्हें एक दन्त के नाम से पुकारा जाने लगा.
लिखी है महाभारत-
महाभारत के लेखक गणेश जी हैं. वेदव्यास ने महाभारत का उच्चारण किया और गणेश जी उसे लिखते गए.
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