पूजा-पाठ और घूमना एक साथ होगा, इन जगहों पर जाइये

अगर आप कहीं ऐसी जगह जाना चाहते हैं जहां आपका घूमना और पूजा-पाठ दोनों हो जाए, तो हम आपको आज कुछ ऐसी ही जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं.

जगन्नाथ रथ यात्रा –

ओडिशा के पुरी में हर साल अषाड़ मास(जुलाई) में आयोजित होने वाली भगवान जगन्नाथ की पवित्र रथ यात्रा किसी बड़े त्योहार से कम नहीं हैं. लाल रंग का ध्वज, काले, पीले, नीले रंग के कपड़ों की चमक देखकर हर कोई ईश्वर की तरफ मोहित हो जाता है.

जगन्नाथ पुरी मंदिर में विष्णु जी के कृष्ण अवतार की प्रतिमा हैं. रथ यात्रा के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान कृष्ण बलराम और सुभद्रा के रथ को रस्सी से खींचकर गुंडीचा मंदिर ले जाते हैं. मान्यता है कि बलराम की बहन सुभद्रा ने अपने दोनों भाइयों से नगर भ्रमण की इच्छा जताई थी तब दोनों भाई अपनी बहन के साथ रथ पर सवार होकर पूरे नगर का भ्रमण कर गुंडीचा मंदिर अपनी मौसी के घर गए थे.
गुंडिचा में भगवान 10 दिन तक रुकते हैं और 11वे दिन वापस जगन्नाथ मंदिर आते हैं. जिसे बहुडा जात्रा कहा जाता है. तीनों भगवान के रथ हर साल एक ही प्रकार से बनाए व सजाए जाते हैं. तीनों रथ को सजाने में 208 किलोग्राम सोना उपयोग होता है. कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा में 100 यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है.
यही वो दिन होता है जब भगवान अपनी प्रजा के साथ निकलते हैं भगवान को इतने करीब से देखकर सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. भारत के कई राज्यों के अलावा विदेशों में भी ये शोभा यात्रा निकाली जाती है.
लाखों की तादाद में लोग भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन करने करने पहुंचते हैं और सबकी बस एक ही इच्छा होती है भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने का सौभाग्य प्राप्त करने की.

बंगाल का दुर्गा उत्सव –

दुर्गा पूजा का उत्सव यूं तो भारत के हर राज्य में मनाया जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल में देवी दुर्गा की आराधना की बात ही अलग है. भव्य पंडालों की सजावट,मां दुर्गा की दिव्य प्रतिमाएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम, खान-पान सब कुछ आनंदित करने वाला होता है.
अगर आप दुर्गा उत्सव के रंग में सराबोर होना चाहते हैं तो आपको इन 10 दिन कोलकाता में ही गुज़ारना चाहिए. बंगालियों के लिए ये त्योहार सिर्फ एक पूजा नहीं बल्कि साल भर के दुख-दर्द और कष्टों से मुक्त होकर मां की आराधना में झूमना होता है.


सभी वर्ग के लोग एक साथ मां की मूर्ती की स्थापना करते हैं, उन्हें पूजते हैं, नाचते-गाते हैं. पूरा कोलकाता दुल्हन की तरह सजाया जाता है. ऐसा लगता है पूरे कोलकाता में आप जिस गली से गुज़रो मां आपको देख रही हों. एक-दो महीने पहले से ही पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. पहले दिन मां को रंग चढ़ता है.
उत्सव के आगाज से एक हफ्ते पहले मां की आंखों को छोड़कर पूरी प्रतिमा तैयार हो जाती है लेकिन सिर्फ आंख महालया के दिन तैयार की जाती है और इस विशेष अवसर को चोक्खू दान कहते हैं. मान्यता है कि मां इसी दिन धरती पर अपने भक्तों के पास आती हैं. मां के आगे छोटे से केले के पेड़ को साड़ी पहनाकर रखा जाता है. सातवें दिन इस पेड़ की पूजा की जाती है जिसे कोला बो कहा जाता है.
अष्टमी के दिन महिलाएं लाल साड़ी और पुरुष धोती पहनकर पंडालों में पहुंचते हैं और हाथ में पलाश फूल से मां को पुष्पांजलि देकर आरती करते हैं. इस दिन पंडाल को बहुत सारे फूलों से सजाया जाता है जिनका आकर्षण आपको मां की भक्ती से महका देता है. 9 वें दिन कुमारी कन्याओं की पूजा की जाती है.
मां के विशालकाय पंड़ालों की छटा देखते ही बनती है. मां अम्बे के दर्शन के लिए लोग रात भर लाइन में खड़े रहते हैं. कोलकाता में पंडाल हमेशा किसी विशेष सामाजिक संदेश और जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से तैयार किये जाते हैं. सबसे अच्छे पंडाल को इनाम भी दिया जाता है.
10 वां दिन यानीकि विजया दशमी का दिन बेहद खास होता है. इस दिन महिलाएं सिंदूर खेला का आयोजन करती हैं. सारी सुहागिन औरते लाल साड़ी पहनती हैं. मां को चढ़ाये सिंदूर को एक-दूसरे को लगाती हैं. गुलाल खेलती हैं.
इस दिन मां को उलू ध्वनी के साथ, नम आंखों से विदाई दी जाती है. इस उत्सव को देखने के लिए लोग अलग-अलग शहरों से कोलकाता पहुचंते हैं.

गणपति उत्सव –

महाराष्ट्र में खासकर मुम्बई के लोगों को साल भर जिसका इंतज़ार रहता है वो है गणेश उत्सव. गणपति को मुंबई का राजा कहा जाता है. बप्पा पूरे शहर पर अपनी नज़र रखते हैं. शहर में छोटे से लेकर बड़े 300 से ज़्यादा पंडाल सजाये जाते हैं. ये आयोजन इतना भव्य और विशाल स्तर पर होता है इसलिए चप्पे -चप्पे पर सुरक्षा के इंतजाम भी बड़े स्टार पर होते हैं. 4 महिने पहले से गणपति उत्सव की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. जगह -जगह लोग ढोल -नगाड़े और बप्पा के अलग-अलग जयकारे लगाने का अभ्यास शुरू कर देते हैं.

मुम्बई के लाल बाग के राजा सबसे मशहूर माने जाते हैं यंहा लोग 24 घण्टे से भी ज़्यादा देर तक बप्पा की एक झलक पाने के लिए बेताब रहते हैं। यहाँ कई बड़ी हस्तियां बप्पा के दर्शन के लिए आती हैं।लाल बाग के राजा के दरबार में जो भी मन्नत मांगो वो पूरी होती है।
लोग करोड़ों का चढ़ावा यहाँ चढ़ाते हैं. जीएसबी मंडल के गणपति सबसे अमीर गणपति हैं. यंहा रोज़ लाखों लोग दर्शन के लिए आते हैं. सोने -चांदी से सजे विघ्नहर्ता अपने भक्तों को सुख समृद्धि प्रदान करते हैं.
अंधेरी पंडाल,चिंचपोकली पंडाल, चिंतामणि राजा, खेतवाड़ी के राजा गणेश गली ऐसे अनेक पंडाल और उनकी भव्यता यहाँ पहुंचने वाले भक्तों को उमंग और उत्साह से भर देती है.
बप्पा की एक झलक लोगों के विघ्न हर लेती है. 10 दिन तक बप्पा की भक्ति में सराबोर मुम्बई अपने राजा को अनंत चौदस वाले दिन पूरे जोश के साथ नाचते-गाते, ढोल-ढमाकों के साथ विदाई देती है. इस जलसे की विशालता देखते ही बनती है मानो पूरा शहर घर से निकलकर बप्पा को विदा करने सड़क पर आ गया हो.
भक्तों की भीड़ के आगे समंदर भी छोटा लगने लगता है. रंग- गुलाल ,फूल, नगाडों के साथ  बस एक ही गूंज आसमान में गूंजती है गणपति बप्पा मोरिया, अगले बरस तू जल्दी आ.

कुम्भ स्नान –

कुम्भ की पवित्रता और महत्वता इस बात से पता चलती है कि इस धार्मिक आयोजन की समरसता में पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण सभी दिशाएं एक हो जाती हैं. भारत के हर कोने से लोग इस पवित्र मेले में डुबकी लगाने आते हैं.
कुम्भ के दौरान एकता में विविधता के दर्शन होते हैं. रंग, जाती, धर्म,वर्ग का भेद- भाव इस पवित्र स्नान में धुल जाता है. अमीर-गरीब, ग्रहस्थ भोगी, सन्यासी, बूढ़े,बच्चे सभी लोग सिर्फ एक ही रंग में रंग जाते हैं वो है ईश्वर की भक्ति.

ऐसी ही है कुम्भ की पवित्र गाथा, जहां एक डुबकी के लिए हजारों मील के फांसले तय कर करोड़ों की तादाद में लोग पहुंचते है. भारत की चार पवित्र धार्मिक नगरी इलाहाबाद(प्रयाग), हरिद्वार,नासिक और उज्जैन में कुम्भ का आयोजन हर बारह वर्ष में एक बार होता है.
पिछले वर्ष उज्जैन में कुम्भ मेले के दौरान 3 करोड़ लोगों ने शाही स्नान किया था. यदि आप भारत की सम्पूर्ण संस्कृति- सभ्यता को देखना चाहते हैं तो कुम्भ मेले में ज़रूर जाना चाहिए. अगला कुम्भ इलाहाबाद(प्रयाग) में 2019 में 21 जनवरी से 19 फरवरी तक होगा.

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