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Karma Yog in Hindi | Geeta Chapter 3 | सफलता का मंत्र है यह योग | Swami Vivikanand

Karma Yog in Hindi | Geeta Chapter 3 | सफलता का मंत्र है यह योग | Swami Vivikanand

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषुकदाचन।
भा कर्मफल हेतुभूः मा ते संगो स्त्वकर्मणि
श्रीमद्भगवद्गीता के 2 अध्याय का 47 श्लोक है |


जिसका सार है कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर ( You have a right to perform your prescribed duties, but you are not entitled to the fruits of your actions)। इसे कर्म योग (karma yoga) भी कहा जाता है जिसे गीता मे सर्वश्रेष्ठ माना गया है। गीता के अनुसार किसी भी इंसान की सफल ज़िंदगी के लिए कर्मयोग का होना सबसे ज्यादा महतव्पुर्ण है।
लेकिन जब जब हमे सुनने को मिलता है की ‘’कर्म किए जा फल की चिंता मत कर’’ तो कभी कभी यह काफी अजीब लगता है की कोई काम हम बिना फल की चिंता के कैसे कर सकते है? आखिर हम कोई संत या सन्यासी तो है नहीं। लेकिन यह इस श्लोक (karma yoga) को गलत ढंग से समझना हुआ। दरअसल यह तो हमे सिर्फ सलाह देता है की आप बस अपना काम करें। उस काम का क्या नतीजा होगा उस पर ज्यादा ध्यान न दे। यह हमे अपने अपने आज मे जीने को कहता है। आज मे जीना ही पल मे जीना है। पल मे जीने के मायने है, आप जहां हो , जिस हाल मे हो उसे भरपूर जियो। उस पल का पूरा मजा लो। इसका मतलब हुआ की आप अपना जो भी काम कर रहे है उसमे पूरी तरह डूब जाओ। उसमे डूबने के मायने है की आप उस पल अपना 100 % दे रहे है। मजेदार बात यह है की आप काम हमेशा अपने आज मे कर रहे होते है लेकिन आपका दिमाग और मन हमेशा भविष्य मे होता है। सुबह से लेकर शाम तक काम करने के बाद भी मन को संतुष्टि नहीं मिलती क्योकि जो हमने किया है या जो हमारे पास है हम उसका सुख नहीं ले पाते और उस काम के नतीजे (result) यानि के भविष्य की चिंता मे डूब जाते है। ऐसा नहीं है की हम जानते नहीं है की नतीजा हमारे हाथ मे है ही नहीं लेकिन फिर भी जान कर अनजान बनते है।  इंसान अगर वर्तमान (present time) मे जीना सीख ले तो उसकी बहुत सारी परेशानियाँ तो अपने आप ही गायब हो जाती है।
आप जिस पल मे जी रहे है वही काम का समय है और उसमे मजा तब ही आएगा जब आप जुट कर अपनी इच्छा के काम कर सकते है बिना चिंता किए की उसका नतीजा आपके हक मे जाएगा या नहीं क्योकि तब ही आप खोने या पाने की चिंता के बिना किसी भी काम को बिना प्रैशर के कर सकते है । यही कर्म योग (karma yoga) है।

कुछ भी नहीं कर रहे हैं तब भी आप जाने-अनजाने ऐसा कर्म कर रहे हैं जिससे शरीर, मन और आसपास का वातावरण रोग ग्रस्त हो रहा है। कर्म को जानने का अर्थ है कि आप जो भी कर रहे हैं उसकी समीक्षा करते रहने से यह समझ में आएगा कि इससे कितना लाभ और कितना नुकसान। अब आप खराब आदतें और बुरे कर्म-कार्य की जगह अच्छी आदतें और अच्‍छे कर्म-कार्य का अभ्यास करें। निरंतर अभ्यास करने से कर्म में कुशलता आती है।  

कैसे बने कर्म में कुशल : कुछ भी प्राप्त करने के लिए कर्म करना ही होगा और कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा न रहे इसके लिए भी कर्म करना ही होगा। योग और गीता हमें यथार्थ में जीने का मार्ग दिखाते हैं। ज्यादातर लोग अतीत के पछतावे और भविष्‍य की कल्पना में जीते हैं। योग कहता है कि वर्तमान में जीने से सजगता का जन्म होता है। यह सजगता ही हमारी सोच को सही दिशा प्रदान करती है। इसी से हम सही कर्म के लिए प्रेरित होते हैं। कर्म में कुशल होने के लिए योग के यम के ‍सत्य और नियम के तप और स्वाध्याय का अध्ययन करना चाहिए। क्रिया योग से कर्म का बंधन कटता है  ।
कर्मयोग दो शब्दों को जोड़कर बनता है – कर्म और योग।  हमारा ज्यादातर समय ऑफिस या घर पर काम करते हुए जाता है। क्या हमारी दिनचर्या को भी साधना का रूप दिया जा सकता है? अपने कर्म को योग बनाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
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ज्यादातर लोग बिना सहारे के नहीं चल सकते। कुछ लोग ही ऐसे होते हैं, जो शुरु से ही बिना सहारे के चल सकते हैं। इसलिए साधना को सही तरीके से संतुलित करने के लिए कर्म योग को आपके जीवन में लाया गया है।
योग के लिए कर्म की जरूरत नहीं है। कर्म से परे जाना योग है। इंसान में संतुलन लाने के लिए कर्म योग की शुरुआत की गई। जिसे हम अपनी जागरूकता, प्रेम, अनुभव या सत्य की झलक कहते हैं, अगर उसे बनाए रखना है तो कुछ नहीं करने का मार्ग बहुत बढिय़ा मार्ग है।

मगर वह बहुत फि सलन भरा और अस्थिर है। सचमुच बहुत ही फि सलन भरा है। यह सबसे आसान और सबसे मुश्किल रास्ता है। यह मुश्किल नहीं है मगर पूरी तरह आसान भी नहीं है, क्योंकि यह सरल है – अभी और यहीं। मगर इस ‘अभी और यहीं’ को कैसे पाएं? आप जो भी करते हैं, वह आपके हाथ में नहीं है। वह कभी आपके हाथ में नहीं होगा। मगर आपके हाथों को अभी किसी चीज की जरूरत है, आपको कुछ पकडऩे की जरूरत है। इसीलिए आपको कर्म योग का सहारा दिया गया है।
ज्यादातर लोग बिना सहारे के नहीं चल सकते। कुछ लोग ही ऐसे होते हैं, जो शुरु से ही बिना सहारे के चल सकते हैं। वे बहुत असाधारण जीव होते हैं। बाकी हर किसी को अपनी जागरूकता को संभालने के लिए सहारे की जरूरत होती है। इसके बिना, ज्यादातर लोग जागरूक नहीं रह सकते। इसलिए साधना को सही तरीके से संतुलित करने के लिए कर्म योग को आपके जीवन में लाया गया है।

किसी ऐसे काम को पूरी भागीदारी के साथ करना, जो आपके लिए कोई मायने नहीं रखता, कर्म के ढांचे को तोड़ता है। अगर अपने क्रियाकलाप को योग बनना है, तो उसे मुक्ति प्रदान करने वाला होना चाहिए। अगर आपका कार्य आपके लिए बंधन की एक प्रक्रिया बन गया है, तो वह कर्म है। इसलिए सवाल यह नहीं है कि आप कितना काम करते हैं। आप उस काम को कैसे करते हैं, इससे फ र्क पड़ता है। अगर आप घिसट-घिसट कर अपना काम कर रहे हैं, तो वह कर्म है। अगर आप मजे-मजे में नाचते-गाते हुए अपना काम कर रहे हैं, तो वह कर्म योग है।

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