अमरनाथ यात्रा के बारे में 20 रोचक जानकारी जानिये

अमरनाथ हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है. हाल में अमरनाथ यात्रियों पर हमला हुआ जिसमें कई श्रद्धालु मारे गये, ऐसा एक बार पहले भी हो चुका है. आज हम आपको अमरनाथ यात्रा से जुड़ी कई रोचक तथ्य बतायेंगे.
1. प्रकृति का अद्भुत वैभव अमरनाथ गुफ़ा, भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है. अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है.
2. एक पौराणिक गाथा के अनुसार भगवान शिव ने पार्वती को अमरत्व का रहस्य (जीवन और मृत्यु के रहस्य) बताने के लिए इस गुफ़ा को चुना था. मृत्यु को जीतने वाले मृत्युंजय शिव अमर हैं, इसलिए ‘अमरेश्वर’ भी कहलाते हैं. जनसाधारण ‘अमरेश्वर’ को ही अमरनाथ कहकर पुकारते हैं.
3. यह जम्मू – कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में 141 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 3,888 मीटर (12756 फुट) की ऊंचाई पर स्थित है. इस गुफ़ा की लंबाई (भीतर की ओर गहराई) 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है. यह गुफ़ा लगभग 150 फीट क्षेत्र में फैली है और गुफ़ा 11 मीटर ऊंची है.
4. अमरनाथ यात्रा के उद्गम के बारे में इतिहासकारों के अलग-अलग विचार हैं. कुछ लोगों का विचार है कि यह ऐतिहासिक समय से संक्षिप्त व्यवधान के साथ चली आ रही है जबकि अन्य लोगों का कहना है कि यह 18वीं तथा 19वीं शताब्दी में मलिकों या मुस्लिम गडरियों द्वारा पवित्र गुफ़ा का पता लगाने के बाद शुरू हुई. आज भी चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है. इतिहासकारों का विचार है कि अमरनाथ यात्रा हज़ारों वर्षों से विद्यमान है. बाबा अमरनाथ दर्शन का महत्त्व पुराणों में भी मिलता है.
5. पुराण अनुसार काशी में लिंग दर्शन और पूजन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य से हज़ार गुना पुण्य देने वाले श्री अमरनाथ के दर्शन है. बृंगेश सहिंता, नीलमत पुराण, कल्हण की राजतरंगिनी आदि में इस का बराबर उल्लेख मिलता है.
6. बृंगेश संहिता में कुछ महत्त्वपूर्ण स्थानों का उल्लेख है जहां तीर्थयात्रियों को श्री अमरनाथ गुफ़ा की ओर जाते समय धार्मिक अनुष्ठान करने पड़ते थे. उनमें अनन्तनया (अनन्तनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी (2,811 मीटर), सुशरामनगर (शेषनाग) 3454 मीटर, पंचतरंगिनी (पंचतरणी) 3845 मीटर और अमरावती शामिल हैं.
7. कल्हण की ‘राजतरंगिनी तरंग द्वितीय’ में कश्मीर के शासक सामदीमत (34 ईपू-17वीं ईस्वी) का एक आख्यान है. वह शिव का एक बड़ा भक्त था जो वनों में बर्फ़ के शिवलिंग की पूजा किया करता था. बर्फ़ का शिवलिंग कश्मीर को छोड़कर विश्व में कहीं भी नहीं मिलता.
8. कल्हण ने यह भी उल्लेख किया है कि अरेश्वरा (अमरनाथ) आने वाले तीर्थयात्रियों को सुषराम नाग (शेषनाग) आज तक दिखाई देता है. नीलमत पुराण में अमरेश्वरा के बारे में दिए गए उल्लेख से पता चलता है कि इस तीर्थ के बारे में छठी-सातवीं शताब्दी में भी जानकारी थी.
9. कश्मीर के महान् शासकों में से एक था ‘जैनुलबुद्दीन’ (1420-70 ईस्वी), जिसे कश्मीरी लोग प्यार से बादशाह कहते थे, उसने अमरनाथ गुफ़ा की यात्रा की थी. इस बारे में उसके इतिहासकार जोनराज ने उल्लेख किया है.
10. अकबर के इतिहासकार अबुल फ़जल (16वीं शताब्दी) ने आइना-ए-अकबरी में उल्लेख किया है कि अमरनाथ एक पवित्र तीर्थस्थल है. गुफ़ा में बर्फ़ का एक बुलबुला बनता है. जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है. चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है.
11. यहां की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफ़ा में बर्फ़ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है. प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इस ‘स्वयंभू हिमानी शिवलिंग’ भी कहते हैं. आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों लोग यहाँ आते हैं.
12. गुफ़ा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ़ के पानी की बूंदे जगह – जगह टपकती रहती है. यही पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग 12-18 फुट लंबा शिवलिंग बनता है. यह बूंदे इतनी ठंडी होती है कि नीचे गिरते ही बर्फ़ का रूप लेकर ठोस हो जाती है.
13. चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ़ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है. श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है. आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ़ का बना होता है, जबकि गुफ़ा में आमतौर पर कच्ची बर्फ़ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए. मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड है.
14. गुफ़ा में अमरकुंड का जल प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. गुफ़ा में टपकता बूंद-बूंद जल भक्तों के लिए शिव का आशीर्वाद होता है. इस हिम शिवलिंग को लेकर हर एक के मन में जिज्ञासावश प्रश्र उठता है कि आखिर इतनी ऊंचाई पर स्थित गुफ़ा में इतना ऊंचा बर्फ़ का शिवलिंग कैसे बनता है.
15. जिन प्राकृतिक स्थितियों में इस शिवलिंग का निर्माण होता है वह विज्ञान के तथ्यों से विपरीत है. यही बात सबसे ज़्यादा अचंभित करती है. विज्ञान के अनुसार बर्फ़ को जमने के लिए क़रीब शून्य डिग्री तापमान ज़रूरी है. किंतु अमरनाथ यात्रा हर साल जून-जुलाई में शुरू होती है. तब इतना कम तापमान संभव नहीं होता. इस बारे में विज्ञान के तर्क है कि अमरनाथ गुफ़ा के आसपास और उसकी दीवारों में मौजूद दरारे या छोटे-छोटे छिद्रों में से शीतल हवा की आवाज़ाही होती है. इससे गुफ़ा में और उसके आस-पास बर्फ़ जमकर लिंग का आकार ले लेती है. किंतु इस तथ्य की कोई पुष्टि नहीं हुई है.
16. जनश्रुति प्रचलित है कि इसी गुफ़ा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक – शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गए. कथा अमरनाथ की मान्यता है कि सतयुग में एक बार देवी पार्वती ने शिव से प्रश्न किया कि आपके अमर होने की क्या कथा है? तथा अनुरोध किया कि वह मानव को अमरता प्रदान बनाने वाला मंत्र उन्हें सिखाएं. महादेव नहीं चाहते थे कि उस ज्ञान को कोई पार्वती के सिवा नश्वर प्राणी सुने, पर वह पार्वती का अनुरोध भी टाल नहीं सकते थे. इसके लिए उन्होंने अमरनाथ की गुफ़ा को चुना, जहां कोई प्राणी न पहुंच सके. वहां उन्होंने पार्वती जी को सारी कथा सुनाई. पर कबूतर के दो अंडे, जो वहां पहले से विद्यमान थे, उस अमर मंत्र को सुनते सुनते वयस्क होकर अमरत्व पा गए. यह भी कहा जाता है कि ये महादेव के ही दो सेवक थे, जो वहां कुरु – कुरु कह कर शोर कर रहे थे, इसलिए शिव ने उन्हें कबूतर बन जाने का शाप दिया, किंतु मंत्र सुन लेने के कारण वे अमर भी हो गए. शिव भक्त मानते हैं कि आज भी गुफ़ा में वे दोनों कबूतर दिखाई पडते हैं, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं.
17. ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों का जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं.
18. लोक मान्यता है कि भगवान शंकर की इस पवित्र गुफ़ा की खोज का श्रेय एक गुज्जर यानि गड़रिये बुटा मलिक को जाता है. एक बार बुटा मलिक पशुओं को चराता हुआ ऊंची पहाड़ी पर निकल गया. वहां उसकी मुलाकात एक संत से हुई. उस संत ने गडरिये को कोयले से भरा थैला दिया. वह थैला लेकर गडरिया घर पहुंचा. जब उसने वह थैला खोला तो वह यह देखकर अचंभित हो गया कि उस थैले में भरे कोयले के टुकड़े सोने के सिक्कों में बदल गए. वह गडरिया बहुत खुश हुआ. वह गडरिया तुरंत ही उस दिव्य संत का आभार प्रकट करने के लिए उसी स्थान पर पहुंचा. लेकिन उसने वहां पर संत को न पाकर उस स्थान पर एक पवित्र गुफ़ा और अद्भुत हिम शिवलिंग के दर्शन किए. जिसे देखकर वह अभिभूत हो गया. उसने पुन: गांव पहुंचकर यह सारी घटना गांववालों को बताई. सभी ग्रामवासी उस गुफ़ा और शिवलिंग के दर्शन के लिए वहां आए. माना जाता है कि तब से ही इस तीर्थयात्रा की परंपरा शुरू हो गई.
19. इसी प्रकार पौराणिक मान्यता है कि एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न हो गई. उसने एक बड़ी झील का रूप ले लिया. जगत् के प्राणियों की रक्षा के उद्देश्य से ऋषि कश्यप ने इस जल को अनेक नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों के द्वारा बहा दिया. उसी समय भृगु ऋषि पवित्र हिमालय पर्वत की यात्रा के दौरान वहां से गुजरे. तब जल स्तर कम होने पर हिमालय की पर्वत श्रृखंलाओं में सबसे पहले भृगु ऋषि ने अमरनाथ की पवित्र गुफ़ा और बर्फानी शिवलिंग को देखा. मान्यता है कि तब से ही यह स्थान शिव आराधना का प्रमुख देवस्थान बन गया और अनगिनत तीर्थयात्री शिव के अद्भुत स्वरूप के दर्शन के लिए इस दुर्गम यात्रा की सभी कष्ट और पीड़ाओं को सहन कर लेते हैं. यहां आकर वह शाश्वत और अनंत अध्यात्मिक सुख को पाते हैं.
20. अमरनाथ की गुफ़ा तक पहुंचने के लिए तीर्थयात्री जम्मू से पहलगाम / पहलगांव जाते हैं. यह दूरी सडक मार्ग से पहलगाम जम्मू से 365 किलोमीटर की दूरी पर है.

अमरनाथ जाने का रास्ता

चंदनबाड़ी

पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से 16 किलोमीटर की दूरी पर है. यह स्थान समुद्रतल से 9500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं. यहां रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं. इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है. लिद्दर नदी के किनारे से इस पड़ाव की यात्रा आसान होती है. यह रास्ता वाहनों द्वारा भी पूरा किया जा सकता है. यहां से आगे जाने के लिए घोड़ों, पालकियों अथवा पिट्ठुओं की सुविधा मिल जाती है. चंदनबाड़ी से पिस्सुटॉप जाते हुए रास्ते में बर्फ़ का पुल आता है. यह घाटी सर्पाकार है.

पिस्सू टाप

चंदनवाड़ी से 3 किमी चढाई करने के बाद आपको रास्ते में पिस्सू टाप पहाडी मिलेगी. जनश्रुतियां हैं कि पिस्सु घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई, जिसमें देवताओं ने कई दानवों को मार गिराया था. दानवों के कंकाल एक ही स्थान पर एकत्रित होने के कारण यह पहाडी बन गई. अमरनाथ यात्रा में पिस्सु घाटी काफ़ी जोखिम भरा स्थल है. पिस्सु घाटी समुद्रतल से 11,120 फुट की ऊंचाई पर है. लिद्दर नदी के किनारे – किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज़्यादा कठिन नहीं है. पिस्सू घाटी की सीधी चढ़ाई चढते हैं जो शेषनाग नदी के किनारे चलती है. 12 कि. मी. का लम्बा नदी का किनारा शेषनाग झील पर जाकर समाप्त होता है. यही तो नदी का उदगम स्थल है. (यही नदी पहलगाम से नीचे जाकर झेलम दरिया में मिल जाती है)

शेषनाग

पिस्सू टाप से 12 कि.मी. दूर 11,730 फीट की ऊंचाई पर शेषनाग पर्वत है, जिसके सातों शिखर शेषनाग के समान लगते हैं. यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है. यहां तक की यात्रा तय करने में 4-5 घंटे लगते हैं. यहीं पर पिस्सु घाटी के दर्शन होते हैं. यात्री शेषनाग पहुंच कर तंबू / कैंप लगाकर अपना दूसरा पडाव डालते हैं. यहां पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की ख़ूबसूरत झील है. जिसे शेषनाग झील कहते हैं. इस झील में झांक कर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया.
यह झील क़रीब डेढ़ किलोमीटर लंबाई में फैली है. किंवदंतियों के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं. तीर्थयात्री यहां रात्रि विश्राम करते है और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं. शेषनाग और इससे आगे की यात्रा बहुत कठिन है. यहां बर्फीली हवाएं चलती रहती हैं. शेषनाग से पोषपत्री तथा फिर पंचतरणी की दूरी छह किलोमीटर है. पोषपत्री नामक यह स्थान 12500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. पोषपत्री में विशाल भंडारे का आयोजन होता है. यहां भोजन, आवास, चिकित्सा सुविधा, ऑक्सीजन सलैंडर आदि की सुविधा उपलब्ध रहती है.

पंचतरणी

पहलगम नदी अमरनाथ

शेषनाग से पंचतरणी आठ मील के फासले पर है. मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता है, जिनकी समुद्र तल से ऊंचाई क्रमश: 13,500 फुट व 14,500 फुट है. इस स्थान पर अनेक झरनें, जल प्रपात और चश्में और मनोरम प्राकृतिक दृश्य दिखाई देते हैं. महागुणास चोटी से नीचे उतरते हुए 9.4 कि.मी. की दूरी तय करके पंचतरिणी पहुंचा जा सकता है. यहां पांच छोटी – छोटी सरिताएं बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है. पंचतरणी 12,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित है. यह भैरव पर्वत की तलहटी में बसा है. यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची – ऊंची चोटियों से ढका है.

बलटाल से अमरनाथ

जम्मू से बलटाल की दूरी 400 किलोमीटर है. यह मार्ग थोड़ा कठिन है, इस रास्ते में जोखिम भी ज़्यादा हैं. इस मार्ग की लंबाई 15 किलोमीटर है. जम्मू से उधमपुर के रास्ते बलटाल के लिए जम्मू कश्मीर पर्यटक स्वागत केंद्र की बसें आसानी से मिल जाती है. बलटाल कैंप से तीर्थयात्री एक दिन में अमरनाथ गुफ़ा की यात्रा कर वापस कैंप लौट सकते हैं.

अमरनाथ गुफ़ा

पूर्णमासी सामान्यत भगवान शिव से संबंधित नहीं है, लेकिन बर्फ़ के पूरी तरह विकसित शिवलिंग के दर्शनों के कारण श्रावण पूर्णमासी (जुलाई – अगस्त) का अमरनाथ यात्रा के साथ संबंध है और पर्वतों से गुजरते हुए गुफ़ा तक पहुंचने के लिए इस अवधि के दौरान मौसम काफ़ी हद तक अनुकूल रहता है. इसलिए बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए तीर्थयात्री अमूमन ‘मध्य जून, जुलाई और अगस्त ( आषाढ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षा बंधन तक पूरे सावन महीने)’ में आते हैं.
जुलाई-अगस्त माह में मॉनसून के आगमन के दौरान पूरी कश्मीर वादी में हर तरफ हरियाली ही हरियाली ही दिखती है. यह हरियाली यहां की प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगाती है. यात्रा के शुरू और बंद होने की घोषणा श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड करती है. इस यात्रा के साथ मात्र हिन्दुओं की ही नहीं बल्कि मुस्लिम और अन्य धर्म की श्रद्धालुओं की भी आस्था जुड़ी है.

छड़ी मुबारक

रक्षाबंधन के दिन पवित्र अमरनाथ धाम में भगवान शिव का विधिवत पूजन कश्मीर के साधु समाज के प्रमुख और गुफ़ा के मुख्य पुजारी करते हैं. कुछ वर्ष पहले तक साधुओं की टोली के साथ यात्रा की प्रतीक छड़ी मुबारक को श्रीनगर से बिजबेहरा, पहलगाम, चंदनबाड़ी, शेषनाग, पंजतरणी के रास्ते से अमरनाथ लाया जाता था. पर अब छड़ी मुबारक की यह यात्रा जम्मू से शुरू होकर परंपरागत मार्ग से होते हुए सीधे पहलगाम तक होती है.
Source- bharatdiscovery.org

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