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भगवान शिव के श्रृंगार के लिए क्यों प्रयोग किया जाता भस्म? क्या है मान्यता?
अब शिवरात्रि का त्यौहार आने वाले है. शिव पूजा से जुड़ी तैयारी होना तो जायज है. शिवरात्रि के त्यौहार पर लोग बहुत धूम -धाम से व्रत रखककर पूजा भी करते हैं. इस त्यौहार को मनाने में भांग की भी मुख्य भूमिका है. शिवजी की मूर्ति पर हर कोई भस्म लगाता है पर शायद ही कोई होगा जिसे भस्म लगाने का पूरा महत्व पता होगा. आइए आपको बताते है आखिर क्यों लगाया जाता है भस्म?
भस्म लगाकर मृत आत्मा से खुद को जोड़ते हैं शिव
माना जाता है कि शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं। उनके अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के पश्चात बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण शेष नहीं रहता. ना उसके दुख, ना सुख, ना कोई बुराई और ना ही उसकी कोई अच्छाई बचती है। शरीर नश्वर है और आत्मा अनंत है.
देवी सती की याद में लगाते हैं भस्म
शिवपुराण की कथा है कि भगवान शिव ने देवी सती के देह त्याग के बाद अपनी सुध-बुध खो दी थी. देवी सती के शव को लेकर भगवान शिव तांडव मचाने लगे थे. भगवान विष्णु ने शिव का मोहभंग करने के लिए चक्र से सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. सती के वियोग में शिव औघड़ और दिगम्बर रुप धारण कर श्मसान में बैठ गए और उस भस्म को अपनी पत्नी की आखिरी निशानी मानते हुए पूरे शरीर में चिता की भस्म लगा लिया. तब से भस्म भी शिव का श्रृंगार बन गया.
भस्म लगाने का वैज्ञानिक कारण
आपने कुंभ मेले में या शिव के भक्त अघोरी बाबाओं को शरीर में भस्म लगी हुई देखी होगी। शरीर पर भस्म लगाने में सर्दियों में ठंड लगती है और गर्मियों में सूखापन महसूस नहीं होता है. दरअसल, भस्म को शरीर पर मलने से त्वचा के रोमछिद्र बंद हो जाते हैं. इस कारण शरद ऋतु में रोम छिद्र बंद होने से सर्दी का अहसास कम होता है.
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